दहेज: एक सामाजिक कुरीति
दहेज एक सदियों पुरानी सामाजिक कुरीति है जो आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसमें शादी के समय लड़की के माता-पिता लड़के या उसके परिवार को धन, आभूषण, संपत्ति या अन्य मूल्यवान चीजें देते हैं। यह प्रथा मुख्य रूप से भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों में प्रचलित है।
दहेज प्रथा के कई नकारात्मक प्रभाव हैं। सबसे पहले, यह महिलाओं को कमतर और आश्रित बनाती है। यह माना जाता है कि दहेज देने से लड़की का पति और ससुराल वाले उस पर अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। दूसरा, यह प्रथा महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डालती है। दहेज के लिए लड़कियों को प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें तलाक दिया जाता है और यहां तक कि उनकी हत्या भी कर दी जाती है। तीसरा, दहेज प्रथा से गरीब परिवारों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। लड़कियों के माता-पिता दहेज जुटाने के लिए कर्ज लेते हैं, अपनी संपत्ति बेचते हैं और यहां तक कि अपने बच्चों को भी बेच देते हैं।
दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। सरकार ने दहेज निषेध अधिनियम बनाया है, लेकिन यह कानून प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाया है। कई स्वयंसेवी संगठन भी दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। हालाँकि, इन सभी प्रयासों के बावजूद दहेज प्रथा अभी भी हमारे समाज में जड़ जमाए हुए है।
दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें सबसे पहले समाज में व्याप्त रूढ़ियों को बदलना होगा। हमें महिलाओं को कमतर नहीं समझना चाहिए। हमें उन्हें शिक्षित और सशक्त बनाना चाहिए। हमें यह मानना चाहिए कि महिलाएँ पुरुषों के बराबर हैं और उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए। दूसरा, हमें दहेज प्रथा के खिलाफ सख्त कानून बनाने चाहिए और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। दहेज देने और लेने वालों को दंडित किया जाना चाहिए। तीसरा, हमें दहेज प्रथा के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। हमें लोगों को बताना चाहिए कि दहेज प्रथा महिलाओं के अधिकारों का हनन है और यह समाज के लिए हानिकारक है।
दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है जिसे हमें मिलकर समाप्त करना चाहिए। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए जिसमें महिलाओं को सम्मान मिले, उन्हें समान अधिकार मिलें और उन्हें दहेज के नाम पर प्रताड़ित न किया जाए।